Khali Hath Meelon paidal chala मीलों पैदल चला और हाथ कुछ भी ना आया
मीलों पैदल चला ,
और हाथ कुछ भी ना आया !
कभी फुर्सत मिली तो सोचूंगा ,
क्या खोया क्या पाया ! – Khali Hath Meelon paidal chala
वक़्त ने मंज़र अजीब दिए मुझको ,
इस सहर ने दिया एक नया हम साया !
हर सूरत अच्छी हो ये मुम्किन है ,
मगर ,
हर दिल को मैंने अंदर तक ,
छलता पाया !
तनहा सारी ज़िन्दगी है ,
तनहा सारी रात है , (Khali Hath Meelon paidal chala)
इक बार कही से आ जाओ ,
खुद को मैंने
कभी ना इतना तनहा पाया !
आज अगर तुम आओ तो ,
थोड़े से आंसू भी लाना ,
मैंने अपनी आँखों को ,
बरसो बीते , सूखा पाया !!
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– By Rakesh Goswami